शनिवार, 17 नवंबर 2007

डॉ. भीम राव अम्बेडकर


हिन्दू मुस्लिम एकता एक असंभव कार्य है भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और वहा से हिन्दुओ को बुलाना ही एक हल है यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं सांप्रदायिक शांति के लिए अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा, विभाजन के बाद भी भारत में सांप्रदायिक हिंसा बनी रहेगी, पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओ की रक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं हैं मुसलमान की भ्रातु भावना केवल मुसलमानों के लिए है कुरान गैर मुसलमान को मित्र बनाने का विरोधी है इसलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य ही हैं मुसलमानों की निष्ठा भी केवल मुस्लिम रास्त्रो के प्रति होती है इसलाम सच्चे मुसलमान हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओ को अपना निकट सम्बन्धी मानने की आज्ञा नहीं देता, संभवतः यही कारण था की मौलाना मोहमद अली जैसे भारतीय मुसलमानों ने भी अपने शरीर को हिंदुस्तान की अपेक्षा येरुशेलम में दफनाना अधिक पसंद किया कांग्रेस में मुसलमानों की स्थितियो के सम्पर्दायिक चौकी की तरह है गुंडागर्दी मुस्लिम राजनीती का स्थापित तरीका हो गया है इस्लामी कानून समाज सुधर के विरोधी हैं वे धर्मनिरपेक्षता को नहीं मानते हैं मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओ और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद 'आतंकवाद' का संकोच नहीं करते.

से लिया गया : प्रमाण सार डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मय, खंड १५

2 टिप्‍पणियां:

Mohammed Umar Kairanvi ने कहा…

प्रेमचंद जी ‘‘इस्लामी सभ्यता’’ पुस्तिका जो मधुर संदेश संगम, दिल्ली से भी छपी है, में लिखते हैं:
‘‘जहां तक हम जानते हैं कि किसी धर्म ने न्याय को इतनी महानता नहीं दी जितनी इस्लाम ने।’’ पृष्ठ 5
‘संसार की किसी सभ्य से सभ्य जाति की न्याय-नीति की इस्लामी न्याय-नीति से तुलना कीजिए, आप इस्लाम का पल्ला झुकता हुआ पाएँगे।’’ पृष्ठ 7
‘‘हिन्दू-समाज ने भी शूद्रों की रचना करके अपने सिर कलंक का टीका लगा लिया। पर इस्लाम पर इसका धब्बा तक नहीं। गुलामी की प्रथा तो उस समस्त संसार में भी, लेकिन इस्लाम ने गुलामों के साथ जितना अच्छा सलूक किया उस पर उसे गर्व हो सकता है।’’ पृष्ठ 10
‘‘हमारे विचार में वही सभ्यता श्रेष्ठ होने का दावा कर सकती है जो व्यक्ति को अधिक से अधिक उठने का अवसर दे। इस लिहाज से भी इस्लामी सभ्यता को कोई दूषित नहीं ठहरा सकता।’’ पृष्ठ 11
‘‘हम तो याहं तक कहने को तैयार हैं कि इस्लाम में जनता को आकर्षित करने की जितनी बडी शक्ति है उतनी और किसी सस्था में नही है। जब नमाज़ पढते समय एक मेहतर अपने को शहर के बडे से बडे रईस के साथ एक ही कतार में खडा पाता है तो क्या उसके हृदय में गर्व की तरंगे न उठने लगती होंगी। उसके विरूद्ध हिन्दू समाज न जिन लोगों को नीच बना दिया है उनको कुएं की जगत पर भी नहीं चढने देता, उन्हें मंदिरों में घुसने नहीं देता।’’ पृष्ठ 14
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हिन्दी के वरिष्ठतम साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र लिखते हैं‘‘जिस समय अरब देशवाले बहुदेवोपासना के घोर अंधकार में फंस रहे थे, उस समय महात्मा मुहम्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने जन्म लेकर उनको एकेश्वरवाद का सदुपयोग दिया। अरब के पश्चिम में ईसा मसीह का भक्तिपथ प्रकाश पा चुका था, किन्तु वह मत अरब, फ़ारस इत्यादि देशों में प्रबल नहीं था और अरब जैसे कट्टर देश में महात्मा मुहम्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के अतिरिक्त और किसी का काम न था कि वहां कोई नया मत प्रकाश करता। उस काल के अरब के लोग मूर्ख, स्वार्थ-तत्पर, निर्दय और वन्य-पशुओं की भांति कट्टर थे। यद्यपि उनमें से अनेक लोग अपने को इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम के वंश का बतलाते और मूर्ति पूजा बुरी जानते किन्तु समाज परवश होकर सब बहुदेव उपासक बने हुए थे। इसी घोर समय में मक्के से मुहम्मद चन्द्र उदय हुआ और एक ईश्वर का पथ परिष्कार रूप से सबको दिखाई पड़ने लगा।’’
antimawtar.blogspot.com
islaminhindi.blogspot.com

Som ने कहा…

डॉ अम्बेडकर के विचार की काट नहीं मिली, तो झूठ के महारथी कैरानवी दूसरों को उठा लाए।